सोमवार, 6 मई 2024

सियालकोट भारत में शामिल होते-होते रह गया था

कुछ लोगों की लापरवाही या कहिए आरामपरस्ती ने देशों के नक्शे बदल कर रख दिए ! ऐसे लोगों के कारण सियालकोट का हिन्दू बहुल इलाका भारत में शामिल होते-होते रह गया ! 1941 की जनगणना के अनुसार सियालकोट में हिन्दुओं की तादाद दो लाख इक्कीस हजार थी। उस में से तकरीबन एक लाख लोगों ने वोट नहीं दिया था और पचपन हजार मतों से सियालकोट का भारत में शामिल करने का प्रस्ताव गिर गया था !  वैसे यह आदत या चरित्र अभी भी पूरी तरह बदली नहीं है..............! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

सियालकोट, पकिस्तान का एक शहर ! आज जो लोग अपने एक वोट को लेकर लापरवाह हैं उनको पता होना चाहिए कि 1946 में कुछ लोगों की आरामपरस्ती, लापरवाही या फर्ज के प्रति उदासीनता के कारण यह शहर हिन्दुस्तान का हिस्सा बनते-बनते रह गया था ! 

कतारें 
देश में आजकल चुनाव चल रहे हैं ! वोट की महत्ता, ताकत, उपयोगिता के बारे में लोगों को जागरूक किया जा रहा है। ऐसा करना जरुरी भी है क्योंकि अधिकांश लोग मतदान के दिन मिले अवकाश को एक अतिरिक्त मिली छुट्टी की तरह ले तफरीह में लग जाते हैं ! उन्हें लगता है कि मेरे एक वोट से कौन सी दुनिया बदल जाएगी ! इसी सोच के कारण हर बार हजारों वोट बेकार चले जाते हैं और नतीजा कुछ का कुछ हो जाता है ! देश की सरकारों को तो छोड़िए देशों का नक्शा तक बदल कर रह जाता है ! इसका एक उदाहरण है सियालकोट ! 
प्रतीक्षा 
वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रदीप सिंह जी ने अपने यू-ट्यूब चैनल ''आपका अखबार'' में एक घटना का जिक्र किया है, जिसके अनुसार मतदाताओं की आरामपरस्ती और लापरवाही से सियालकोट जो लाहौर से 135 तथा जम्मू से सिर्फ 42 किमी दूर है और उस समय  भारत का हिस्सा बनते-बनते रह गया था ! बात बंटवारे के पहले की है जब देश के बंटवारे की प्रक्रिया चल रही थी। देश के बड़े नेता गोपीनाथ बोरदोलोई चाहते थे कि सियालकोट भारत का हिस्सा बने क्योंकि उस समय वह हिन्दू बहुल इलाका था ! पर फिर भी यह तय पाया गया की उसका भविष्य जनमत संग्रह से होगा। दिन, तारीख, समय और वोट का तरीका तय हो गया। निश्चित समय पर मतदान शुरू होते ही पोलिंग बूथ के सामने मुसलमानों की लंबी-लंबी कतारें लग गईं। उन्होंने अपने वोट का हक अदा किया। इधर अधिकांश हिन्दू आराम से उठे, नास्ता-पानी किया और दोपहर तक वहां पहुंच कर लंबी-लंबी कतारों को देखा तो आधे तो ऐसे ही वापस आ गए कि कौन इतनी देर खड़ा रहेगा ! कुछ लोग रुके कि यदि लाइन जल्दी छोटी हो जाए तो वोट डाल ही देते हैं पर वे भी कतारों की सुस्त रफ्तार से तंग या कहिए थक कर वापस हो लिए !
उत्साह 
जनमत संग्रह का जब नतीजा आया तो पता चला कि 55000 वोटों से यह प्रस्ताव पास हो गया कि सियालकोट को पाकिस्तान में शामिल किया जाएगा ! इस तरह एक हिन्दु बहुल इलाका भारत में शामिल होते-होते रह गया ! 1941 की जनगणना के अनुसार सियालकोट में हिन्दुओं की तादाद दो लाख इक्कीस हजार थी। उस में से तकरीबन एक लाख लोगों ने वोट नहीं दिया था और पचपन हजार मतों से सियालकोट का भारत में शामिल करने का प्रस्ताव गिर गया था ! कुछ लोगों की लापरवाही या कहिए आरामपरस्ती ने देशों के नक्शे बदल कर रख दिए ! वैसे यह आदत या चरित्र अभी भी पूरी तरह बदला नहीं है ! 
जोश 
इसके बाद का इतिहास लोगों को मालुम ही होगा जब 1946 के  सोलह अगस्त के जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन का कहर सियालकोट पर भी बरपा, खून-खराबा हुआ ! लूट-खसोट हुई ! वो आराम-तलब लोग भी सदा के लिए आराम के हवाले कर दिए गए जो लंबी कतारें देख घर वापस आ गए थे ! उन्हीं जैसे लोगों की लापरवाही के कारण 1951 की जनगणना के अनुसार वहां हिंदुओं की संख्या सिर्फ दस हजार रह गई थी, इतना ही नहीं 2017 की गणना के अनुसार वहां केवल 500 हिन्दू बचे थे ! आज का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, पता नहीं एक भी हिन्दू बचा भी है कि नहीं ! 
EVM
तो अपने विवेक का प्रयोग कर, देश हित में वोट तो जरूर दें, बिना किसी के बहकावे में आए ! जो आपको सुपात्र लगे ! साफ- सुथरी छवि का हो ! देश, जनहित की बात करता हो ! निष्पक्ष हो ! बेदाग हो और जन-जन का हो ! 
वंदे मातरम ! 

सोमवार, 29 अप्रैल 2024

कारनामे सिर्फ एक वोट के

हम व्यवस्था को उसकी नाकामियों की वजह से कोसने में कोई ढिलाई नहीं बरतते पर कभी भी अपने कर्तव्य को नजरंदाज करने का दोष खुद को नहीं देते ! वर्षों बाद आने वाले सिर्फ एक दिन के कुछ पलों के लिए भी हम अपने आराम में खलल डालने से बचते हैं ! कभी विपरीत मौसम, कभी लंबी कतारों का हवाला दे खुद को सही ठहराने लगते हैं ! देश में अनगिनत ऐसे  लोग मिल जाएंगे जो अपनी मौज-मस्ती के लिए वोट वाले दिन मिले इस  अवकाश को, अपने मनोरंजन में खर्च करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते..........! 

#हिन्दी_ब्लागिंग 

यदि मैं किसी दिन बिजली ना होने की वजह से पानी का पंप न चल पाने के कारण सिर्फ हाथ मुंह पौंछ कर भुनभुनाता हुआ घर से काम पर निकलता हूँ ! बाहर टूटी-फूटी गड्ढों भरी सड़क पर रेंगती गाड़ियां मुझे देर पर देर करवाती हैं ! गर्मी बेहाल करती है ! वातावरण धूँए-गुबार से अटा पड़ा होता है ! सांस लेते ही गले में जलन और खांसी आने लगती है तो मैं आपा खो कर सीधे-सीधे सरकार और व्यवस्था को कोसना शुरू कर देता हूँ ! उस समय मैं यह भूल जाता हूँ कि पिछली बार के चुनाव में मेरी वोटिंग वाले दिन सोमवार था, शनि से सोम तक की उन तीन दिनों की छुट्टियों के सदुपयोग के लिए मैं शुक्रवार की शाम को ही सपरिवार नैनीताल के लिए निकल गया था, बिना अपने और पत्नी के वोट के बेकार हो जाने की परवाह किए ! तो आज यह मेरा हक नहीं बनता कि मैं व्यवस्था को कोसूं ! क्योंकि इस सब की कहीं ना कहीं, किसी ना किसी तरह मेरी गफलत भी तो कारण बनती ही है !   

EVM
हम व्यवस्था को उसकी नाकामियों की वजह से कोसने में कोई ढिलाई नहीं बरतते पर कभी भी अपने कर्तव्य को नजरंदाज करने का दोष खुद को नहीं देते ! वर्षों बाद आने वाले सिर्फ एक दिन के कुछ पलों के लिए भी हम अपने आराम में खलल डालने से बचते हैं ! कभी विपरीत मौसम, कभी लंबी कतारों का हवाला दे खुद को सही ठहराने लगते हैं ! देश में अनगिनत ऐसे  लोग मिल जाएंगे जो अपनी मौज-मस्ती के लिए वोट वाले दिन मिले अवकाश को, अपने मनोरंजन में खर्च करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते ! उन्हें कभी भी अपनी इस भूल के कारण हो सकने वाले नुक्सान का ख्याल नहीं आता !  

कतारें 
एक वोट की कीमत को कुछ ना समझने वालों को हमें याद दिलाना है कि सिर्फ एक वोट की कमी के कारण क्या से क्या हो चुका है ! एक वोट ने लोगों के साथ-साथ देशों की तकदीर बदल दी है ! यह इतिहास में दर्ज है फिर भी हम सबक नहीं लेते ! 

* 1917 में सरदार पटेल जैसे नेता सिर्फ एक वोट से म्युनिसिपल कार्पोरेशन का चुनाव हार गए थे !

* कर्नाटक विधानसभा के 2004 के चुनाव में जनता दल सेक्युलर के उम्मीदवार  ए.आर.कृष्णमूर्ति विधानसभा चुनाव में एक वोट से हारने वाले पहले शख्स बन गए थे !

*  2008 के राजस्थान विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सी.पी.जोशी सिर्फ एक वोट से हार गए थे। विडंबना यह रही कि उनकी माताजी, उनकी पत्नी तथा उनका ड्राइवर वोट डालने गए ही नहीं थे ! 

* 17 अप्रैल 1999 के उस एक वोट को कौन भूल सकता है, जिसने बाजपेई जी की सरकार को पलट कर रख दिया था ! अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में 270 और खिलाफ 269 वोट पड़े थे !

* 2017 में राज्यसभा की सीट के लिए हुए एक कड़े मुकाबले में कांग्रेस के अहमद पटेल सिर्फ आधे वोट से जीते थे !

* अभी कुछ ही दिनों पहले हिमाचल की राज्यसभा सीट का परिणाम, वोट बराबर होने की वजह से लॉटरी से निकाला गया था !

वैसे यह वोट ना देने की बिमारी जगत व्यापी है ! वर्षों-वर्ष से ! विदेशों में भी सिर्फ एक वोट ने कहर बरपाया है !

* 1775 में अमेरिका की राष्ट्रभाषा के लिए जर्मन और इंग्लिश के बीच चुनाव हुआ सिर्फ एक वोट से वहां अंग्रेजी को मान्यता मिल गई, जो आज तक टिकी हुई है !

* अमेरिका में 1800, 1824 व 1876 में हुए चुनावों में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सिर्फ एक-एक वोट से जीते थे  !

* अमेरिका के राष्ट्रपति पद के चुनावों में करोड़ों वोट पड़ने के बावजूद बुश और कैनेडी कुछ सौ मतों से ही विजयी हुए थे !

* 1875 में फ्रांस की राजशाही एक वोट से खत्म हो गई थी ! जब आराम परस्त शाही परिवार गफलत में पड़ कर्तव्य से चूक गया था ! उस एक भूल के कारण तब से आज तक फ्रांस में लोकतंत्र कायम है !

* 1979 में इंग्लॅण्ड में विपक्ष की नेता थैचर ने एक अविश्वास प्रस्ताव में सत्ताधारी प्रधानमंत्री जेम्स कैलहैन को सिर्फ एक वोट से पदच्युत करवा दिया था !  

अपना प्रत्याशी 
सदा की तरह निष्कर्ष तो यही निकलता है कि हमें अपने एक वोट की ताकत को याद रखना है ! हमारे विचार जिस किसी से भी मिलते हों, हम जिस किसी को भी पसंद करते हों, अपना मत उसे देना ही है ! हमारे अकेले से क्या फर्क पड़ता है इस सोच को खत्म करना ही है, क्योंकि हम अकेले ही नहीं सैंकड़ों लोग इस तरह की सोच की गिरफ्त में हैं और इस तरह सैकड़ों वोटों का विपरीत फर्क हर बार पड़ता रहता है !

सोमवार, 22 अप्रैल 2024

विडंबना या समय का फेर

भइया जी एक अउर गजबे का बात निमाई, जो बंगाली है और आप पाटी में है, ऊ बोल रहा था कि किसी को हराने, अलोकप्रिय करने या अप्रभावी करने का बहुत सा रास्ता है। ऐसा कि करे एक और दुसरा समझता रहे कि उसका नुक्सान किसी तीसरे ने किया है.... ! आक्रांत जब तक समझे कि दुश्मन कउन है, तब तक खेला खत्म ! भइया जी उसका बात हमारे पल्ले नहीं पड़ा ! हमको कुच्छो समझे नहीं आया ! इसका का मतलब हो सकता है ?मैं चुप रहा ! सोच रहा था निमाई बहुत आगे जाएगा.................!  

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कल शाम बालकनी में खड़ा था तभी देखा सामने से बिनोद जा रहा है।  बहुत दिन हो गए थे उसका आता-पता नहीं था, सो आवाज दे डाली। उसने घूम कर देखा, नमस्ते की और घर आ गया। उसके अंदर आते ही मैंने पूछा कि क्या बात है, बहुत दिनों से दिखे नहीं ! उसने कहा ऐसे ही कुछ काम में फंसा था ! मैंने यूंही पूछ लिया कि क्या चुनावों के काम में ?  

''अरे नहीं भइया, ई सब से हम दूरे रहते हैं ! बस थोड़ा-बहुत खोज-खबर रखते हैं ! वइसे इस बार तो सब कुछ बहुते ही गजबे का हो रहा है !

'' क्या ! कैसा गजब ?    

''अरे भइया, आपको तो सब्बे खबर पहले ही मिल जाता है ! वह हंस दिया। 

''अरे फिर भी ! मैंने कुरेदा। 

''भइया जी ! हम चार ठो बचपन का दोस्त हैं ! अभिहें हम सब सुदामा का चा का गुमटी पर बइठे थे। ऊ तीनों निठल्ला हैं। कोई काम-काज नहीं है पर अभी चुनाव में तीनों को अलग-अलग पाटी में काम मिल गया है। थोड़ा पइसा मिला तो चा पाटी कर रहे थे। उनमें एक भगत बन गया है, एक चमचा और एक आपिया............

वह कुछ और बोले उसके पहले ही मैंने टोक दिया, ''कैसी भाषा बोल रहे हो ! सभ्य और समझदार लोग ऐसे शब्दों में बात नहीं करते ! 

मेरी आवाज से बिनोद अपनी गलती समझ तो गया फिर भी सफाई में बोला ''ऊ लोग ऐसे ही बतियाता है !

''कोई गलती करेगा तो तुम भी करोगे ? गलत बात है ! नाम ले कर बात किया करो ! उनको भी समझाओ !

''जी, भइया !

तभी अंदर से चाय आ गई ! माहौल सामान्य हुआ ! मैं अपनी जिज्ञासा रोक नहीं पा रहा था ! पूछ ही लिया !

''इस बार कौन सा गजब का बात देख रहे हो ?

''बहुते है ! पर सबसे बड़का अचरज तो अपना दिल्ली में ही है ! चा का टपरी पर उसी का बात हो रहा था ! देखिए, देश का सबसे बलशाली कुनबा ! जहां का तीन-तीन, चार-चार परधान मंत्री बना ! देश का दूसरा सबसे बड़ा पाटी ! अभी भी सबसे जोरावर परिवार ! पर दिल्ली का जउन सा निर्वाचन छेत्र का सीट का लिस्ट में इन लोगन का नाम है, जहां इ लोग वोट देगा, ऊ छेत्र का वोटिंग मशीन पर इनका पाटी का निशाने ही नहीं है ! तो ई लोग कउन चिन्ह का बटन दबाएगा ? इसी पर सब बहिसिया रहे थे ! 

''पर भइया जी एक अउर गजबे का बात निमाई, जो बंगाली है और आप पाटी में है, ऊ बोल रहा था कि किसी को हराने, अलोकप्रिय करने या अप्रभावी करने का बहुत सा रास्ता है। ऐसा कि करे एक और दुसरा समझता रहे कि उसका नुक्सान किसी तीसरे ने किया है.... ! आक्रांत जब तक समझे कि दुश्मन कउन है, तब तक खेला खत्म ! भइया जी उसका बात हमारे पल्ले नहीं पड़ा ! हमको कुच्छो समझे नहीं आया ! इसका का मतलब हो सकता है ?

मैं चुप रहा ! सोच रहा था निमाई राजनीति में बहुत आगे जाएगा। 

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

सफलता जोश से मिलती है, रोष से नहीं

ट्रक ड्राइवर ब्लॉगर राजेश रवानी आज जहां अपने ब्लॉग से अच्छी-खासी आमदनी कर रहे हैं वहीं कांग्रेस का कुंठित मानस पुत्र जो इंजीनिरिंग करने के बाद ऑटो रिक्शा चला रहा है, समाज व सरकार को कोस रहा है ! यहां बात है, इस किरदार के सोच की ! वह अपने काम को, जो उसे रोजी-रोटी दे रहा है, घटिया समझता है और अपने ऑटो चालक होने की बात को समाज से छुपाने के लिए घर से टाई वगैरह पहन कर निकलता है ! कैसी सोच है यह ? कौन हैं ऐसे किरदार को गढ़ने वाले ? कैसी मानसिकता है उनकी ! जिस काम से घर की रोजी-रोटी चल रही हो, उसी को घटिया समझना ! अपनी नाकामियों का दोष दूसरों के सर मढ़ना ! उस युवक के चेहरे पर दूसरों के प्रति रोष, आवाज का तीखापन, विद्रूपता यह सब मिल कर उसके प्रति सहानुभूति नहीं नफरत ही पैदा करते हैं ..............!

सफलता पाने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती ! ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं ! ताजातरीन है झारखंड राज्य के जामताड़ा जिले के निवासी श्री राजेश रवानी ! जो 25 वर्षों से भी अधिक समय से ट्रक चला कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं ! एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि कैसे कठिन आर्थिक स्थिति के कारण बेहद विकट परिस्थितियों में उन्होंने अपना समय गुजारा ! अपने अब तक के पूरे जीवन में हमेशा किराए के घर में रहे ! पर समय के अनुसार, बढ़ती उम्र में भी वे अपने में बदलाव ले आए ! 

यात्रा के दौरान पाक क्रिया 

अपनी ट्रक ड्राइवर की नौकरी के दौरान, देश भर में घूमते हुए सोशल मीडिया पर विभिन्न तरह के वीडियो वगैरह देख उनको भी लगा कि मैं भी ऐसा कुछ नया कर सकता हूँ ! परिवार के बच्चों से आयडिया लिया और अपनी ट्रक यात्राओं के दौरान, अपना खुद का खाना बनाने के वीडियो ''ट्रक ड्राइवर ब्लॉगर'' के नाम से बना, यू ट्यूब पर ड़ाल दिए ! वीडियो इतना लोकप्रिय हुआ कि उनके फॉलोअर्स का आंकड़ा 15 लाख की संख्या को छूने जा रहा है ! राजेश जी ने अभी हाल ही में अपनी कमाई से एक नया घर खरीदा है. उन्होंने दुनिया को यह दिखाया है कि आपकी उम्र या आपका पेशा कितना भी मामूली क्यों न हो, खुद को स्थापित करने में कभी देर नहीं होती ! 

इसके ठीक विपरीत आजकल कांग्रेस पार्टी का एक विज्ञापन मीडिया पर एक ऐसे कुंठित युवक को दिखा रहा है जो इंजीनिरिंग करने के बाद ऑटो रिक्शा चला रहा है ! बात रिक्शा चलाने की नहीं है बात है इस किरदार के सोच की ! वह अपने काम को, जो उसे रोजी-रोटी दे रहा है, घटिया समझता है और अपने ऑटो चालक होने की बात को समाज से छुपाने के लिए घर से टाई वगैरह पहन कर निकलता है ! कैसी सोच है यह ? कौन हैं ऐसे किरदार को गढ़ने  गढ़ने वाले ? कैसी मानसिकता है उनकी ! जिस काम से घर की रोजी-रोटी चल रही हो, उसी को घटिया समझना ! अपनी नाकामियों का दोष दूसरों के सर मढ़ना ! उस युवक के चेहरे पर दूसरों के प्रति रोष, आवाज का तीखापन, विद्रूपता यह सब मिल कर उसके प्रति सहानुभूति नहीं नफरत ही पैदा करते हैं !

जहां परिस्थितियों ने राजेश रवानी को आजीविका के लिए ट्रक चलाने के लिए मजबूर किया, वहीं खाना पकाने के प्रति उनके जुनून और उस प्यार को दुनिया के साथ साझा करने की उनकी इच्छा ने उन्हें एक ब्रेकआउट स्टार बना दिया है। दूसरी ओर वह नवयुवक अपनी असफलता का जिम्मेदार समाज व सरकार को समझता है ! यह भी तो हो सकता है उसने किसी ऐसी जगह से डिग्री हासिल की हो जिसकी मान्यता  ही ना हो ! या फिर किसी तरह सिर्फ डिग्री हासिल कर ली हो और काम की कसौटी पर खरा ही ना उतर पा रहा हो ! जो भी हो यह विज्ञापन अपने निर्माता की ओछी सोच को बेपर्दा कर रहा है !   

भले ही यह रियल और रील की बात है पर सोच की दिशा तो साफ दिखाई पड़ रही है ! वैसे भी कोई भी सरकार, वादे भले ही करती रहे, देश के सभी युवाओं को नौकरी दे सकती है ? यदि ऐसा कहा जाता है तो वह सिर्फ और सिर्फ झूठ है ! युवाओं को खुद अपने पैरों पर खड़ा होना होगा ! किसी का मुंह ना जोहते हुए, किसी के आश्वासनों पर इन्तजार ना करते हुए, जो भी काम हो उससे शुरुआत करनी होगी ! अपने पर विश्वास करना होगा ना कि नेताओं के खोखले वादों पर !    

रविवार, 7 अप्रैल 2024

ठ से ठठेरा ! कौन है यह ठठेरा ?

ठठेरा एक हिन्दू जाति है, जो परम्परागत रूप से चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी राजपूत हैं। ये लोग अपने को सहस्त्रबाहु का वंशज मानते हैं। इनके अनुसार जब परशुराम जी ने पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने का प्रण लिया तो बहुतेरे लोगों ने अपनी पहचान छुपा, बर्तनों का व्यवसाय शुरू कर दिया। जो आज तक चला आ रहा है। कुछ लोग अपने को मध्यकालीन हैहय वंशी भी मानते हैं..............!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

कल शाम पार्क में घूमते हुए एक बाप-बेटे की बातचीत के कुछ ऐसे अंश मेरे कानों में पड़े कि मैं सहसा चौंक गया ! युवक अपने बच्चे को हिंदी वर्णमाला के अक्षरों से परिचित करवा रहा था। आजकल के अंग्रेजियत के समय में यह एक दुर्लभ वार्तालाप था सो मेरा सारा ध्यान उन पर ही अटक कर रह गया और मैं यथासंभव उनके साथ ही चलने लगा। कुछ ही देर में "ट वर्ग" की बारी आ गयी। युवक के 'ठ' से 'ठठेरा' बतलाने और बालक द्वारा उसका अर्थ पूछने पर युवक ने बताया, यूटेंसिल्स का काम करने वाले को हिंदी में ठठेरा कहते हैं। यह अर्थ आज की पीढ़ी के अधिकांश लोगों को पता नहीं होगा ! बालक की ठठेरा-ठठेरा की रट सुनते हुए मैं उनसे आगे निकल गया। 
सच बताऊँ तो मुझे पता नहीं था कि पचासों साल पहले पुस्तक की तस्वीर में एक आदमी को बर्तन के साथ बैठा दिखा हमें पढ़ाया गया 'ठ' से 'ठठेरा' अभी तक वर्णमाला में कायम है ! जरा सा पीछे लौटते हैं ! पंजाब का फगवाड़ा शहर ! बालक रूपी मैं, अपने ददिहाल गया हुआ था। शाम को काम से लौटने पर दादाजी मुझे बाजार घुमाने ले जाते थे। उन दिनों वहाँ बाजार के अलग-अलग हिस्सों में एक जगह, एक ही तरह की वस्तुओं की दुकाने हुआ करती थीं। जैसे मनिहारी की कुछ दुकाने एक जगह, कपड़ों की एक जगह, आभूषणों की एक जगह वैसे ही बर्तनों का बाजार में अपना एक हिस्सा था, उसे ठठेरेयां दी गली या ठठेरा बाजार कहा जाता था। 
बाजार शुरू होते ही पीतल, तांबे, कांसे के बर्तनों पर लकड़ी की हथौड़ियों से काम करते लोग और उनसे उत्पन्न तेज और कानों को बहरा  कर देने वाली ठक-ठन्न-ठननं-ठक-ठन्न की लय-बद्ध आवाजें एक अलग ही समां बांध देती थीं। यह ठठेरों के साथ मेरा पहला परिचय था। तब से सतलुज में काफी पानी बह गया है। तांबे-पीतल-कांसे के बर्तन चलन से बाहर हो चुके हैं ! कांच-प्लास्टिक-मेलामाइन-बॉन चाइना का जमाना आ गया है, ऐसे में तब ठठेरों का क्या हुआ ?


यही सोच कर जब हाथ-पैर मारे, पुस्तकें खंगालीं तो हैरत में डालने वाली जानकारी सामने आई। पता चला कि ठठेरा एक हिन्दू जाति है, जो परम्परागत रूप से चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी राजपूत हैं; जो अपने को सहस्त्रबाहु का वंशज मानते हैं। जो वाल्मीकि रामायण के अनुसार, प्राचीन काल में महिष्मती (वर्तमान महेश्वर) नगर के राजा कार्तवीर्य अर्जुन थे। उन्होंने भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय को प्रसन्न कर वरदान में उनसे 1 हजार भुजाएं मांग लीं। इसी से उनका नाम सहस्त्रबाहु अर्जुन पड़ गया था। मान्यता चली आ रही है कि जब परशुराम जी ने पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने का प्रण लिया तो बहुतेरे लोगों ने अपनी पहचान छुपा बर्तनों का व्यवसाय शुरू कर दिया। जो आज तक चला आ रहा है। कुछ लोग अपने को मध्यकालीन हैहय वंशी भी कहते हैं। कुछ भी हो आज इस कारीगर, शिल्पकार, दस्तकार शिल्पियों की पहचान विश्व भर में हो गई है, जब 2014 में यूनेस्को ने इनके कांसे और ताम्र शिल्प को भारत की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दे दी। करीब 47 उपजातियों में अपनी पहचान कायम रखे ये लोग वैसे तो देश-दुनिया में हर जगह के निवासी हैं पर मुख्यत: इनका वास पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान में है। 

तो आज से जब भी "ठ" से "ठठेरा" पढ़ने या उसका अर्थ बतलाने का संयोग हो तो एक बार उनके समृद्ध इतिहास का स्मरण जरूर कर लें।  

बुधवार, 27 मार्च 2024

विलुप्ति की कगार पर पारंपरिक कलाएं, बीन वादन

आए दिन कोई ना कोई कलाकार, स्टैंडिंग कॉमेडियन या कोई संस्था अपने साथ कुछ लोगों को साथ ले विदेश में कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं, ऐसे लोग यदि अपने साथ बीन जैसी विलुप्त होती पारंपरिक विधाओं के किसी एक कलाकार को भी साथ ले जाएं तो इन लोक कलाओं को विलुप्त होने से कुछ हद तक बचाया जा सकता है ! यदि सरकार और सरकारी संस्थाएं सचमुच ऐसे कलाकारों का सरंक्षण चाहती हैं तो वे एक नियम ही बना दें कि मनोरंजन के लिए जाने वाले हर ग्रुप को कम से कम एक ऐसे कलाकार को ले जाना आवश्यक है.......!    

#हिन्दी_ब्लागिंग 

हमारा देश अपनी पारंपरिक विविधताओं के लिए दुनिया भर में विख्यात है। यहां जितनी विविधताएं हैं, उतनी ही विविध कलाएं भी हैं। हर इलाके या राज्य की इस क्षेत्र में अपनी-अपनी विरासत है, फिर चाहे वह नृत्य हो, वादन हो, संगीत हो या लोकनाट्य हो। हर एक कला का अपना समृद्ध इतिहास और सांस्कृतिक महत्व है। पर खेद का विषय है कि आधुनिकता की अंधी दौड़ में कुछ श्रमसाध्य, जटिल व दुष्कर पारंपरिक कलाएं, वक्त के साथ ताल-मेल ना बैठा पाने के कारण धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर आ खड़ी हुई हैं ! ऐसी ही एक कला है, बीन वादन !

बीन 
पिछले दिनों अपनी संस्था RSCB के सौजन्य से हरियाणा के झज्जर जिले के एक पिकनिक स्थल जॉय गाँव जाने का अवसर मिला था। इस तरह के मनोरंजन स्थलों पर इनके निर्माता अपने आबालवृद्ध सभी तरह के ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के साथ-साथ खेलों और कार्यक्रमों का भी इंतजाम कर रखते हैं। यहां भी इस तरह के कई आयोजनों में एक था बीन वादन। जी हां, वही बीन जिसकी फ़िल्मी धुन पचासों साल के बाद आज भी संगीत प्रेमियों के दिल-ओ-दिमाग पर छाई हुई है, जबकि वह असली बीन थी भी नहीं ! 

मुकेश जी, डॉ. गोयल व हीरा लाल जी के साथ  
उस दिन जॉय गाँव में घूमते-घूमते मैं, डॉ गोयल और हीरा लाल जी, अपनी पारंपरिक वेश-भूषा में अकेले बैठे श्री मुकेश नाथ जी के पास जा पहुंचे। अति विनम्र और मृदुभाषी मुकेश जी का बातों-बातों में, उपेक्षित होते बीन वादन को लेकर दर्द उभर आया ! हालांकि इसी बीन की बदौलत वे एक बार इटली में सम्मानित हो चुके हैं पर धीरे-धीरे पहचान खो रही अपनी इस पुश्तैनी कला के भविष्य को लेकर वे खासे चिंतित भी हैं ! उन्होंने हमें इस वाद्य पर जो धुनें सुनाईं, वे किसी को भी मंत्रमुग्ध करने की क्षमता रखती हैं ! उन्होंने इस साज की बेहतरी के लिए अपनी तरफ से कुछ बदलाव भी किए हैं। यू-ट्यूब (Haryana Jogi Music) पर भी उनको देखा-सुना जा सकता है।  

मुकेश नाथ जी 
मुकेश नाथ जी के परिवार में बीन वादन की कला पीढ़ियों से चली आ रही है। कुछ कारणों से वे स्कूली शिक्षा तो हासिल नहीं कर पाए, पर इस वाद्य की वादन विधा, जो उन्होंने अपने दादा और पिता से सीखी, उसमें वे पूरी तरह से पारंगत हैं। यही निपुणता 2007 में उन्हें केरल के एक संगीत ग्रुप के साथ हफ्ते भर के लिए विदेश, इटली, तक भी ले गई थी। उस सम्मान का पूरा श्रेय वे बीन को ही देते हैं। पर इसके साथ ही वर्तमान पीढ़ी द्वारा इस कला से बढ़ती दूरी उन्हें दुखी भी करती है ! उनके दो बेटे हैं जिनमें छोटे उमेश नाथ, जिन्होंने दसवीं तक शिक्षा प्राप्त की है वही इसमें थोड़ी-बहुत रूचि दिखाते हैं, उनका ज्यादा ध्यान ड्रम वादन पर है। उमेश के अनुसार वे पारंपरिक कला को सहेजना तो चाहते हैं, पर जी तोड़ मेहनत और समय देने के बावजूद उतनी आमदनी नहीं होती कि सुचारु रूप से घर चलाया जा सके ! 

मुकेश जी अपने बेटे उमेश के साथ 
मुकेश नाथ जी का मानना है कि आज के बच्चे उतनी मेहनत से कतराते हैं, जितनी इस वाद्य में जान फूंकने के लिए जरुरी है ! वैसे भी यह पूरे शारीरिक दम-ख़म की मांग करता है। इसे बजाने के लिए फेफड़ों का अत्याधिक मजबूत होना अति आवश्यक है। समय भी अपनी पूरी दावेदारी रखता है ! पर वे आमदनी की बात पर अपने बेटे से पूरी तरह सहमत हो जाते हैं ! यही वह कारण है जिसकी वजह से जहां उनके पैतृक गांव में घर-घर में बीन वादक होते थे, अब वहाँ गिने-चुने पांच-सात लोग ही रह गए हैं ! 

बीन अपने एक नए उपकरण के साथ 
हालांकि सुना गया है कि भारतीय जन नाट्य संघ #IPTA देश की पहचान गंवाती प्राचीन कलाओं को सहेजने का प्रयास कर रही है पर उसमें सक्षम देश वासियों का सहयोग भी जरुरी है। आए दिन कोई ना कोई कलाकार, स्टैंडिंग कॉमेडियन या कोई संस्था अपने साथ कुछ लोगों को साथ ले विदेश में कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं, ऐसे लोग यदि अपने साथ बीन जैसी विलुप्त होती विधाओं के किसी एक कलाकार को भी साथ ले जाएं तो इन पारंपरिक कलाओं को विलुप्त होने से कुछ हद तक रोका जा सकता है ! यदि #भारत_सरकार और #संस्कृति_मंत्रालय या दूसरी #सरकारी_संस्थाएं सचमुच ऐसे कलाकारों का सरंक्षण चाहती हैं तो वे एक नियम ही बना दें कि मनोरंजन के लिए विदेश जाने वाले हर ग्रुप को कम से कम एक ऐसे कलाकार को ले जाना आवश्यक है, पारंपरिक कला से जुड़ा हो। यदि ऐसा हो सके तो हम अपनी विलुप्त विरासतों को संरक्षित तो कर ही सकेंगे साथ ही उपार्जन की कमी के कारण विमुख होते लोक कलाकारों की हौसला-अफ़जाई भी कर सकेंगे।  

बुधवार, 13 मार्च 2024

अवमानना संविधान की

आज CAA के नियमों को लेकर जैसा बवाल मचा हुआ है, उसका मुख्य कारण उसके नियम नहीं हैं बल्कि हिन्दू विरोधी नेताओं की शंका है, जिसके तहत उन्हें लगता है कि गैर मुस्लिम लोगों को नागरिकता मिल जाने से उनका वोट बैंक कमजोर पड़ जाएगा ! उन्हें अपने मतलब के अंधकार में उन लाखों लोगों का दर्द नहीं दिखलाई पड़ता जो वर्षों-वर्ष से बिना किसी पहचान के निर्वासित जीवन जीने को मजबूर हैं ! ये लोग सीधे-सीधे तो कह नहीं सकते तो उसी संविधान की आड़ ले कर इस कानून का विरोध कर रहे हैं जो उन्हें ऐसा करने का अधिकार ही नहीं देता ! पर वे ऐसा अभी भी आम जनता को बौड़म समझने वाली सोच की तहत किए जा रहे हैं..........!

#हिन्दी_ब्लागिंग 

एक होता है संविधान, जिसके अनुसार देश चलता है ! एक होता है न्यायालय, जिस पर देश की कानून व न्याय व्यवस्था की जिम्मेवारी होती है। न्यायालय का शिखर है सर्वोच्च न्यायालय ! यही सर्वोच्च न्यायालय संविधान का संरक्षक होता है ! अब देखने की बात यह है कि जब न्यायालयों के संचालकों, महामहिमों की बात की जरा सी अवहेलना पर किसी पर भी मानहानि का मुकदमा चल सकता है तो उनके संरक्षण में रहने वाले संविधान, के विरुद्ध आचरण करने वालों पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की जाती ! क्यों उसका मजाक बनाया जाता है ? उसकी गलत आड़ लेकर अपना मतलब सिद्ध करने वालों को कोर्ट क्यों नहीं तुरंत बेनकाब करता ? जबकि संविधान सर्वोपरि है, गुरुग्रंथ है, उसकी कसमें खाई जाती हैं !

ज्यादातर राजनीति करने वालों का मुख्य लक्ष्य सत्ता हासिल करने का ही होता है ! उसके लिए वे किसी भी हथकंडे को काम में लाने में नहीं हिचकते ! इसमें कोई भी दल दूध का धुला नहीं होता ! वर्षों से मौकापरस्त, सत्ता पिपासु लोग समयानुसार संविधान की दुहाई दे कर जनता को गुमराह करते रहे हैं ! जबकि जनता ज्यादातर अनपढ़ होती थी ! आज भी अनपढ़ को तो छोड़िए, लाखों पढ़े-लिखे लोगों को भी संविधान के "स'' का पता नहीं है ! पर अब जिस तरह से देश में जागरूकता दस्तक दे रही है,  हर तरफ बदलाव दिख रहा है, खासकर शिक्षा के क्षेत्र में ! बच्चे भी पहले से ज्यादा समझदार और जानकार हो गए हैं, तो अब होना यह चाहिए कि संविधान की मुख्य बातें स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल कर दी जाएं ! जिससे वे जब बड़े हो कर जिम्मेदार नागरिक बनें तो कोई भी ऐरा-गैरा उन्हें बेवकूफ ना बना सके ! हालांकि अभी भी हमारी आँखों पर धर्म, जाति, भाषा, सम्प्रदाय की पट्टी बंधी हुई है। अभी भी चुनावों में यह मुख्य कारक होते हैं फिर भी कोशिश तो जारी रहनी ही चाहिए ! इसके लिए सबसे अहम है जागरूकता और उसके लिए जरुरी है शिक्षा और यही वह अस्त्र है जिसके द्वारा हर तरह की कुटिलता का नाश संभव हो सकता है। सत्य की सदा जय हो सकती है। 

आज नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के नियमों को लेकर जैसा बवाल मचा हुआ है, उसका मुख्य कारण उसके नियम नहीं हैं बल्कि हिन्दू विरोधी नेताओं की शंका है, जिसके तहत उन्हें लगता है कि गैर मुस्लिम लोगों को नागरिकता मिल जाने से उनका वोट बैंक कमजोर पड़ जाएगा ! उन्हें अपने मतलब के अंधकार में उन लाखों लोगों का दर्द नहीं दिखलाई पड़ता जो वर्षों-वर्ष से बिना किसी पहचान के निर्वासित जीवन जीने को मजबूर हैं ! ये लोग सीधे-सीधे तो कह नहीं सकते तो उसी संविधान की आड़ ले कर इस कानून का विरोध कर रहे हैं जो उन्हें ऐसा करने का अधिकार ही नहीं देता ! पर वे ऐसा अभी भी आम जनता को बौड़म समझने वाली सोच की तहत किए जा रहे हैं ! विडंबना है कि वे उसी संविधान का गलत सहारा लेने की कोशिश कर रहे हैं, जिसकी शपथ ले वे सत्ता की कुर्सी पर काबिज हुए हैं ! 

जो भी दल सत्ता में होता है वह चुनावों में अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए हर दांव चलता है, हर पैंतरा आजमाता है ! ऐसे में विरोधी दलों के नेता, जो खुद उसी खेल के खिलाड़ी हैं, ऐसे दांव-पेंच वे खुद भी बखूबी आजमाते रहते हैं, उनको अपनी अलग मजबूत रणनीति बना मुकाबला करना चाहिए नाकि सिर्फ सत्ता पक्ष को गरियाते हुए चिल्ल्पों मचा के अपना ही जुलुस निकलवाना चाहिए ! जनता तो इनका तमाशा देख ही रही है पर आश्चर्य है कि संविधान के संरक्षक क्यों चुप हैं.........!

विशिष्ट पोस्ट

सियालकोट भारत में शामिल होते-होते रह गया था

कुछ लोगों की लापरवाही या कहिए आरामपरस्ती ने देशों के नक्शे बदल कर रख दिए ! ऐसे लोगों के कारण  सियालकोट का हिन्दू बहुल इलाका भारत में शामिल ह...